ऋषिकेश, उत्तराखंड: इस वर्ष शरद पूर्णिमा सोमवार को पड़ रही है, इसलिए यह पूर्णिमा विशेष महत्व रखती है। सोमवार का दिन चंद्रमा का माना जाता है और पूर्णिमा तिथि में चंद्रमा की उपासना की जाती है। इस कारण पूर्णिमा व्रत करने वालों को चंद्र देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
शरद पूर्णिमा का महत्व
आष्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इसे रास पूर्णिमा, कौमुदी व्रत और कोजागर व्रत के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की परिसर स्थित श्री सरस्वती मंदिर के आचार्य राकेश कुमार शुक्ल के अनुसार, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन ही समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज में रासलीला की थी।
शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की उपासना करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि रात्रि में जागरण करते हुए मां लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर भ्रमण करती हैं और भक्तों को धन-धान्य का वरदान देती हैं। यही कारण है कि इसे कोजागर व्रत भी कहा जाता है।
चंद्रमा और खीर का महत्व
आचार्य राकेश कुमार शुक्ल ने बताया कि इस पूर्णिमा की एक विशेषता यह है कि चंद्रमा की किरणों से अमृत की बूंदें टपकती हैं। रात्रि में खुले आसमान के नीचे खीर रखने से उसमें अमृत तत्व आ जाता है और यह बड़े रोगों में औषधि का काम करती है।
पूर्णिमा तिथि और व्रत का समय
इस वर्ष पूर्णिमा तिथि 6 और 7 अक्टूबर को है, लेकिन 6 अक्टूबर को ही व्रत करना उचित होगा। पूर्णिमा का प्रारंभ 6 अक्टूबर को दोपहर 12:20 बजे से होगा और समापन 7 अक्टूबर को प्रातः 9:15 बजे होगा। 7 अक्टूबर को केवल स्नान, दान आदि करना शुभ रहेगा।
ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस बार शरद पूर्णिमा पर विष योग बन रहा है, जिसमें शनि और चंद्रमा मीन राशि में विराजमान रहेंगे। इसलिए इस दिन चंद्रमा की उपासना विशेष रूप से लाभकारी है।
आराधना और अर्घ्य का समय
- घर में माता लक्ष्मी के निमित्त दीप जलाएं।
- श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें।
- छह अक्टूबर को रात 8:30 बजे चंद्रमा को अर्घ्य देना शुभ रहेगा।
इस दिन मां लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा करने से धन-धान्य, सुख-समृद्धि और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।