देहरादून का परेड ग्राउंड इन दिनों सिर्फ़ एक मैदान नहीं, बल्कि बेरोजगार युवाओं की उम्मीद और संघर्ष का प्रतीक बन गया है। बीती रात से करीब 300 से अधिक छात्र-छात्राएँ यहीं डटे हुए हैं। बारिश और ठंड के बावजूद किसी ने चूल्हा जलाकर खाना बनाया, तो किसी ने गद्दे बिछाकर थके हुए साथियों को सहारा दिया।
मासूम चेहरों पर थकान साफ झलकती है, लेकिन उनके हौसले को टूटते हुए कोई नहीं देख सकता। युवाओं का कहना है कि यह आंदोलन अब “ज़िंदगी और मौत” की लड़ाई बन चुका है।
छात्रों की पुकार
परेड ग्राउंड पर रात गुजार रहे युवाओं का दर्द साफ झलकता है। वे पूछ रहे हैं:
- “क्या उत्तराखंड का भविष्य अब सड़कों पर रातें काटने के लिए मजबूर है?”
- “क्या पढ़ाई और सालों की मेहनत के बाद भी हमें नौकरी की जगह सिर्फ़ इंतजार और संघर्ष ही मिलेगा?”
सोशल मीडिया पर बेरोजगार युवाओं की यह तस्वीरें तेजी से वायरल हो रही हैं। “#दुन_की_सड़कें” और “#परेड_ग्राउंड” जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
आंदोलन तेज करने की तैयारी
युवाओं ने चेतावनी दी है कि जब तक पेपर लीक मामले में सख्त कार्रवाई नहीं होती और परीक्षा दोबारा आयोजित नहीं की जाती, उनका संघर्ष जारी रहेगा। आंदोलनकारी मांग कर रहे हैं:
- एक महीने के भीतर परीक्षा दोबारा हो।
- आयोग और अधिकारियों की पूरी जांच हो।
- दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
इसी कड़ी में मंगलवार 23 सितंबर को गोपेश्वर, चंपावत और नैनीताल में बड़ी रैलियां आयोजित की जाएंगी। बेरोजगार संघ और युवाओं ने सभी से बड़ी संख्या में पहुंचने की अपील की है।
“पेपर ही नहीं, पूरा सिस्टम लीक है”
युवाओं का आरोप है कि यह सिर्फ़ एक पेपर लीक नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की नाकामी है। उनका कहना है कि अगर उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिश हुई तो यह आंदोलन और भी उग्र हो सकता है।
परेड ग्राउंड में बिछे गद्दों और जलते चूल्हों के बीच गूंजती यह आवाज़ सरकार से सिर्फ़ एक सवाल पूछ रही है—
“क्या उत्तराखंड के मेहनती युवाओं को उनका हक मिलेगा, या उन्हें सड़कों पर ही अपना भविष्य तलाशना होगा?”