धर्म डेस्क: शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2025 को पूरे देश में सुहागिन महिलाओं द्वारा करवाचौथ का व्रत रखा जाएगा। यह महापर्व हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन दांपत्य जीवन की पवित्रता, प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। परंपरा है कि इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना से दिनभर निर्जला उपवास रखती हैं।
करवा चौथ का धार्मिक महत्व
करवा चौथ का व्रत भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश, कार्तिकेय और चंद्रदेव की पूजा-अर्चना से जुड़ा है। मान्यता है कि माता पार्वती ने भी भगवान शिव के दीर्घायु होने की कामना से इस व्रत का पालन किया था। इसलिए इस व्रत को अखंड सौभाग्य और सुखद दांपत्य जीवन का प्रतीक माना जाता है।
करवा चौथ पूजा विधि
पूजा की शुरुआत शाम के समय सूर्यास्त से पहले की जाती है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और चौथ माता की विधिवत पूजा करती हैं।
पूजा का क्रम:
- पूर्व या उत्तर दिशा में लकड़ी की चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं।
- चौकी पर शिव परिवार, गणेश जी और चौथ माता की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें।
- एक लोटे में जल भरकर ऊपर श्रीफल रखें और कलावा बांधें।
- दूसरा मिट्टी का टोंटीदार करवा लेकर उसमें जल, सराई, पताशे और दक्षिणा रखें।
- रोली, अक्षत, फूल, पुष्पमाला, दीपक और मिठाई से पूजन करें।
- इसके बाद चौथ माता की कथा सुनें या पढ़ें।
- रात्रि में चंद्रोदय के समय छलनी की ओट से चाँद देखकर अर्घ्य दें और पति का दर्शन करें।
पर्व की तिथि एवं विशेष जानकारी
पर्व | तिथि | दिन | विशेष जानकारी |
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करवा चौथ 2025 | 10 अक्तूबर 2025 | शुक्रवार | कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, सुहागिनों का महापर्व |
चंद्रोदय समय | रात लगभग 8:15 बजे | (भारत समयानुसार) | चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोलना शुभ |
चंद्रमा की पूजा का महत्व
करवा चौथ पर चंद्रदेव की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि चंद्रमा मन के अधिपति देवता माने जाते हैं। उनकी अमृतमयी किरणें मनुष्य के मन, स्वास्थ्य और सौंदर्य पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
महिलाएं जब छलनी से चांद को निहारती हैं, तो उनके मन में पति के प्रति प्रेम और श्रद्धा का भाव बढ़ता है। इससे दांपत्य जीवन में मधुरता और स्थिरता आती है।
वीरवती की कथा और छलनी से चांद देखने की परंपरा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक पतिव्रता स्त्री वीरवती ने करवाचौथ का व्रत रखा। भूख से व्याकुल होकर जब उसने झूठे चाँद को देखकर व्रत खोला, तो उसके पति की मृत्यु हो गई। वीरवती ने पूरे वर्ष चतुर्थी का व्रत रखा और अगले करवाचौथ पर सच्चे भाव से पूजा की, जिससे चौथ माता प्रसन्न होकर उसके पति को जीवनदान दिया।
तब से ही छलनी में से चाँद को देखने और अर्घ्य देने की परंपरा चली आ रही है।
करवा चौथ केवल एक व्रत नहीं, बल्कि प्रेम, विश्वास और समर्पण का पर्व है। यह भारतीय संस्कृति में सौभाग्य और वैवाहिक सुख का उत्सव है, जो हर वर्ष लाखों विवाहित महिलाओं द्वारा पूरे श्रद्धा-भाव से मनाया जाता है।