देहरादून। सरकारी नौकरी पाने के चक्कर में कुछ लोग ऐसी चालाकी दिखा जाते हैं जो खुद उनके गले का फंदा बन जाती है। ऐसा ही एक मामला उत्तराखंड में सामने आया है, जहां सुरेंद्र नाम के युवक ने नौकरी पाने के लिए तीन फॉर्म भरे और हर बार अलग-अलग दस्तावेज लगाए। लेकिन उसकी एक छोटी सी गलती ने पूरा खेल बिगाड़ दिया।
यूए की जगह यूके ने खोली पोल
सेवायोजन कार्यालय में जांच के दौरान सामने आया कि सुरेंद्र ने अपने इम्प्लाई आईडी की शुरुआत “UA” से की, जबकि उत्तराखंड की सही आईडी “UK” से शुरू होती है। यही नहीं, आईडी में जहां 16 अंक होने चाहिए थे, उसने केवल 13 ही अंक लिखे। यहीं से उसके फर्जीवाड़े की परतें खुलनी शुरू हुईं।
तीन बार बदला पिता का नाम और पते का खेल
सुरेंद्र ने अपने पिता के नाम की स्पेलिंग तीनों फॉर्म में अलग-अलग लिखी — एक बार सालीक, दूसरी बार शालीक और तीसरी बार सलीक। यही नहीं, उसने फर्जी स्थायी प्रमाणपत्र बनवाकर उस पर देहरादून का पता भी डाल दिया।
जांच में पता चला कि उसने एक पता हापुड़, दूसरा गाजियाबाद और तीसरा देहरादून का दर्शाया। यानी एक ही व्यक्ति तीन अलग-अलग जगहों का निवासी निकला!
22 साल बाद मिला स्थायी प्रमाणपत्र — वो भी बिना हस्ताक्षर के
सुरेंद्र ने अपने एक फॉर्म में स्थायी प्रमाणपत्र संलग्न किया, जिसमें लिखा था कि आवेदन 2001 में किया गया था और प्रमाणपत्र 2023 में जारी हुआ। लेकिन जांच में पाया गया कि शासनादेश की संख्या गलत थी और एसडीएम के हस्ताक्षर भी नहीं थे। यानी यह दस्तावेज पूरी तरह फर्जी था।
तीन साल में तीन विश्वविद्यालयों से ग्रेजुएशन — गजब कर दिया
फर्जीवाड़े का सबसे हैरान करने वाला पहलू तब सामने आया जब उसने वर्ष 2010 से 2013 के बीच तीन अलग-अलग विश्वविद्यालयों से स्नातक की डिग्री होने का दावा किया। जबकि एक व्यक्ति एक ही समय में तीन जगह पढ़ाई नहीं कर सकता। इतना ही नहीं, उसने जन्मतिथि और शैक्षिक योग्यता भी हर फॉर्म में अलग-अलग दिखाई ताकि सिस्टम को भ्रमित किया जा सके।
जांच में खुला खेल, अब कार्रवाई तय
सेवायोजन विभाग की गहन जांच में सुरेंद्र कुमार का यह पूरा फर्जीवाड़ा उजागर हुआ है। अब इस पूरे मामले की रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेजी गई है, और जल्द ही उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की तैयारी की जा रही है।