धर्म डेस्क: कार्तिक मास, जो सभी बारह मासों में सबसे पवित्र और पुण्यदायी माना जाता है, के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। यह पावन व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपनी संतान की दीर्घायु, सुख-समृद्धि, और निरोगी जीवन की कामना के लिए किया जाता है। उत्तराखंड में इसे “अहोई आठें” के नाम से भी जाना जाता है। ‘अहोई’ शब्द का अर्थ है अनहोनी को होनी में बदल देने वाली शक्ति, और इस शक्ति की अधिष्ठात्री माता पार्वती को अहोई माता के रूप में पूजा जाता है। इस साल अहोई अष्टमी 13 अक्टूबर 2025 को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाएगी।
अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी का व्रत माताओं के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह उनकी संतान की सुरक्षा और समृद्धि के लिए समर्पित है। इस दिन माताएं मां पार्वती से प्रार्थना करती हैं कि उनकी संतान हर प्रकार के कष्टों से सुरक्षित रहे और उनके जीवन में सुख-शांति बनी रहे। यह व्रत न केवल धार्मिक, बल्कि भावनात्मक रूप से भी माताओं और बच्चों के बीच के बंधन को मजबूत करता है। उत्तराखंड में इस पर्व को विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है, जहां माताएं अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए पूजा-अर्चना करती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में एक नगर में एक साहूकार के सात पुत्र थे। दीपावली से पहले साहूकार की पत्नी घर की लिपाई-पुताई के लिए मिट्टी लेने खदान में गई। वहां कुदाल से मिट्टी खोदते समय अनजाने में उसकी कुदाल एक सेई (साही) के बच्चे को लग गई, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना से साहूकार की पत्नी को गहरा दुख हुआ, और वह पश्चाताप के साथ घर लौट आई।
कुछ समय बाद, साहूकार की पत्नी के एक-एक करके सभी सात पुत्रों की मृत्यु हो गई। वह शोक में डूब गई और पड़ोस की महिलाओं को रोते हुए अपनी व्यथा सुनाई। उसने बताया कि उसने जानबूझकर कोई पाप नहीं किया, लेकिन खदान में सेई के बच्चे की अनजाने में हत्या के बाद उसके सभी पुत्रों का निधन हो गया।
पड़ोस की महिलाओं ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, “तुमने अपनी गलती स्वीकार कर आधा पाप नष्ट कर लिया है। अब कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई माता की शरण लो। सेई और उसके बच्चों का चित्र बनाकर उनकी पूजा करो और क्षमा मांगो। माता की कृपा से तुम्हारा पाप नष्ट हो जाएगा।”
साहूकार की पत्नी ने उनकी सलाह मानी और अहोई अष्टमी के दिन व्रत, पूजा, और क्षमा-याचना की। उसने हर साल नियमित रूप से यह व्रत रखा। माता की कृपा से उसे पुनः सात पुत्रों की प्राप्ति हुई। तब से यह परंपरा चली आ रही है, और आज भी माताएं संतान की कामना और सुरक्षा के लिए अहोई माता का व्रत रखती हैं। यह व्रत पुत्र या पुत्री, दोनों के लिए समान रूप से शुभ फलदायी माना जाता है।
अहोई अष्टमी व्रत विधि
- स्नान और संकल्प: सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। संतान की मंगल कामना के लिए अहोई माता का व्रत संकल्प लें।
- अहोई माता की पूजा: दीवार पर अहोई माता, सात पुत्रों, और सेई का चित्र बनाएं या स्थापित करें। पास में जल का कलश और पूजन सामग्री (रोली, चंदन, फूल, दीप, मिठाई) रखें।
- निर्जल या फलाहार व्रत: व्रत आमतौर पर निर्जल रखा जाता है, लेकिन स्वास्थ्य के अनुसार फलाहार लिया जा सकता है।
- तारों की छांव में पूजा: शाम को तारे दिखने पर तारों की छांव में अहोई माता की पूजा करें। दीप जलाएं, कथा सुनें, और जल अर्पित करें।
- कथा और आरती: अहोई माता की कथा सुनें और ‘जय जय अहोई माता’ की आरती करें।
- संतान को आशीर्वाद: व्रत खोलने के बाद बच्चों को मिठाई खिलाकर आशीर्वाद दें।
क्या न करें
- धारदार वस्तुओं का उपयोग: सुई, कैंची, या नुकीली वस्तुओं का प्रयोग वर्जित है।
- झगड़ा या कटु वचन: मन, वचन, और कर्म से पवित्रता बनाए रखें।
- जीव-जंतु को हानि: सेई की कथा के कारण किसी जीव को नुकसान न पहुंचाएं और जमीन की खुदाई से बचें।
- भोजन पकाना: व्रतधारी माताएं दिन में भोजन न बनाएं और न खाएं।
- नकारात्मक विचार: निंदा या बुरे विचारों से दूर रहें।
उत्तराखंड में उत्साह
उत्तराखंड में अहोई अष्टमी का पर्व विशेष भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है। मंदिरों और घरों में पूजा की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। बाजारों में दीये, मिठाइयां, और पूजन सामग्री की दुकानें सज गई हैं। स्थानीय पंडितों का कहना है कि इस व्रत में श्रद्धा और नियमों का पालन सबसे महत्वपूर्ण है।
यह लेख शास्त्रों, पौराणिक कथाओं, और उत्तराखंड की परंपराओं पर आधारित है। अधिक जानकारी के लिए स्थानीय पंडित या पंचांग से संपर्क करें।