कार्तिक मास 2025

कार्तिक मास 2025: दामोदर मास की पवित्रता, श्रीकृष्ण की लीला और भक्ति का संदेश

धर्म डेस्क: हिंदू धर्म में कार्तिक मास को अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी माना जाता है। भगवान श्रीहरि विष्णु को विशेष रूप से प्रिय यह महीना दामोदर मास के नाम से भी जाना जाता है। श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित दामोदर लीला के माध्यम से यह मास भक्त और भगवान के बीच निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक बन जाता है। कार्तिक मास में दीपदान, तुलसी पूजन और दामोदराष्टक का पाठ करने से सभी पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

दामोदर नाम की उत्पत्ति: भागवत पुराण की भावपूर्ण लीला

श्रीमद्भागवत महापुराण में भगवान श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का हृदयस्पर्शी वर्णन है। नंदगांव में बालक रूप में लीला रचते हुए एक दिन माता यशोदा उन्हें मक्खन चोरी करते पकड़ लेती हैं। नटखट कृष्ण भागने लगते हैं, लेकिन यशोदा उन्हें पकड़कर ओखली से रस्सी बांधने का प्रयास करती हैं। आश्चर्यजनक रूप से रस्सी हर बार दो अंगुल कम पड़ जाती। यशोदा प्रेम और श्रम से रस्सी जोड़ती रहती हैं। अंततः नारायण स्मरण से कृष्ण अपनी माया समेट लेते हैं, और रस्सी उनके उदर (पेट) पर बंध जाती है। इसी से उनका नाम ‘दामोदर’ पड़ा—दाम (रस्सी) + उदर (पेट)।

यह लीला बाल-क्रीड़ा मात्र नहीं, बल्कि आध्यात्मिक संदेश है। भगवान सच्चे, निस्वार्थ भक्ति के आगे समर्पित हो जाते हैं। यशोदा का वात्सल्य प्रेम बिना भय या लोभ के था, जो भक्त को ईश्वर से जोड़ता है।

कार्तिक मास का आध्यात्मिक महत्व: भक्ति और प्रकाश का प्रतीक

कार्तिक मास भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को समर्पित है। दामोदर पूजा की परंपरा से भक्त पापमुक्ति और मोक्ष प्राप्त करते हैं। इस मास में दीपदान से अंधकार नष्ट होता है, तुलसी पूजन से वैवाहिक सुख मिलता है, और दामोदराष्टक पाठ से भक्ति भाव जागृत होता है। माना जाता है कि सच्ची भक्ति से भगवान स्वयं बंध जाते हैं, जो संसार को प्रेम का संदेश देता है।

भक्ति का महीना, जीवन का प्रकाश

कार्तिक मास भक्तिभाव, संयम और प्रकाश का प्रतीक है। दामोदर लीला से सीख मिलती है कि निस्वार्थ प्रेम से ईश्वर प्राप्ति संभव है। इस मास में पूजा-अर्चना से जीवन सुखमय बनता है। दामोदर रूप में श्रीकृष्ण की आराधना कर भक्त सभी विपत्तियों से मुक्त हो जाते हैं। यह समय भक्ति में लीन होकर परिवार और आत्मा को शुद्ध करने का है।

यह आर्टिकल भागवत पुराण और धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। स्थानीय पंचांग अनुसार तिथियां भिन्न हो सकती हैं।

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