देहरादून: उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) पेपर लीक मामले की जांच के दौरान अभ्यर्थियों की व्यथा आयोग के समक्ष छलक उठी। बुधवार को रिटायर्ड न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की अध्यक्षता में चल रही लोक सुनवाई के दौरान कई उम्मीदवार भावुक हो गए। उन्होंने आयोग के सामने अपनी संघर्षभरी ज़िंदगी और आर्थिक स्थिति का ज़िक्र करते हुए कहा कि अब वे देहरादून में रहकर पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ हैं।
“माता-पिता खेती और सब्ज़ी बेचकर भेजते हैं पैसे”
टिहरी गढ़वाल के दीपक नौटियाल ने आयोग के सामने कहा कि उन्हें सुबह अखबार के जरिए यह खबर मिली कि उनका पेपर लीक हो गया है। यह सुनते ही उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। दीपक ने बताया कि उनके माता-पिता गांव में खेती करके और सब्ज़ी बेचकर उन्हें पढ़ाई के लिए रुपये भेजते हैं।
उन्होंने कहा, “अब वे सोच रहे हैं कि अगर इस बार भी नौकरी नहीं मिली तो वे परिवार का खर्च चलाने के लिए गांव लौट जाएंगे।”
“लोग पूछते हैं– तुमने भी यह पेपर दिया था?”
दीपक ने बताया कि पेपर लीक की खबर के बाद उनके गांव के लोग और छोटे बच्चे उनसे पूछ रहे हैं,
‘तुमने भी यह पेपर दिया था क्या?’
वे इस सवाल का जवाब नहीं दे पा रहे थे। उन्होंने कहा कि यह घटना उनके जैसे सैकड़ों युवाओं की मेहनत और उम्मीदों पर पानी फेर गई।
“पापा गांव में सब्जी बेचकर रुपये भेजते हैं”
चमोली के सचिन पुरोहित ने भी अपनी व्यथा आयोग के समक्ष रखी। बात करते-करते उनकी आंखें नम हो गईं। सचिन ने बताया कि उनके पिता गांव में सब्ज़ी बेचकर उन्हें पैसे भेजते हैं ताकि वे देहरादून में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सकें।
उन्होंने कहा,
“अब कब तक ऐसे चलेगा? अगर हम यहां पढ़ाई करते रह गए तो घर कैसे चलेगा। अगर प्राइवेट नौकरी करेंगे तो 15 हज़ार से ज़्यादा नहीं मिलेंगे। इससे अच्छा है कि गांव जाकर पिता के साथ सब्ज़ी उगाएं।”
आयोग के समक्ष खुला युवा पीड़ा का पन्ना
जांच आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की मौजूदगी में हुए इस लोक संवाद में अभ्यर्थियों ने सरकार से न्याय और सख्त कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि पेपर लीक के कारण युवाओं की पूरी तैयारी और करियर पर प्रश्नचिह्न लग गया है।
आयोग अब इन बयानों और अभ्यर्थियों की ओर से दिए गए लिखित पक्षों को रिपोर्ट का हिस्सा बनाएगा।