यमकेश्वर राजनीति में टंकी वितरण विवाद | जल संकट और घर-घर जल नल योजना की नाकामी

यमकेश्वर की राजनीति में टंकियों का नया ट्रेंड, लोग बोले—”समस्या का समाधान नहीं, दिखावा मात्र”

यमकेश्वर क्षेत्र में हाल ही में टंकियों के वितरण को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी बहस छिड़ गई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि गाँवों में जहाँ आज भी पीने के पानी की भारी किल्लत है, वहाँ केवल टंकी बाँटने से समस्या का असली हल नहीं निकलने वाला।

स्थानीय निवासी सुधेश भट्ट ने अपनी टिप्पणी में लिखा—
“यमकेश्वर की राजनीति में टंकियों का नया प्रचलन समझ से बाहर है। जहाँ गाँवों में पीने का पानी ही नहीं है, वहाँ टंकियों को प्राथमिकता दी जा रही। असल में यह घर-घर जल नल योजना की नाकामी को छिपाने का तरीका है। बेहतर होता कि सरकार सूखे पड़े नलों में पानी पहुँचाने का प्रयास करती, न कि टंकियाँ बाँटती।”

मनोज बेलवाल ने भी इसी मुद्दे पर अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा कि टंकियाँ एक तात्कालिक उपाय तो हो सकती हैं, लेकिन यह जल संकट का स्थायी समाधान कभी नहीं बन सकतीं। उन्होंने लिखा—
“घर-घर जल नल योजना का उद्देश्य था हर घर तक पानी पहुँचाना, लेकिन कई जगह यह योजना केवल कागजों तक सीमित रह गई। टंकियाँ बाँटना असली समस्या से ध्यान भटकाने जैसा है।”

ठाकुर अरविंद ने टंकियों के साथ फोटो खिंचवाने वाले नेताओं पर तंज कसते हुए कहा—
“फोटो ऐसे खींच रहे हैं जैसे गोल्ड मैडल लेकर आए हों। शर्म नहीं आती इनको, यही विकास है तुम लोगों का—बस टंकी बाँटो और काम खत्म।”

सुशील असवाल ने भी सवाल उठाते हुए कहा कि विकास की असली योजनाओं—सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और पानी की आपूर्ति—पर ध्यान देने की बजाय नेताओं का पूरा जोर केवल टंकी बाँटने पर है। उन्होंने लिखा—
“पीने का पानी पहुँचे या न पहुँचे, फर्क नहीं पड़ता। टंकियाँ खासमखास लोगों तक पहुँच रही हैं और आम जनता आज भी परेशान है।”

वहीं, देव उत्तराखंडी पहाड़ी ने इस पूरे मामले को व्यापक राजनीतिक संदर्भ से जोड़ते हुए कहा कि जब तक उत्तराखंड की राजनीति भाजपा और कांग्रेस तक सीमित रहेगी, जनता को ठगा जाता रहेगा। उन्होंने अपील की कि क्षेत्रीय पार्टी यूकेडी को मजबूत किया जाए और पहाड़ के असली मुद्दों—जल, जंगल, जमीन, शिक्षा और स्वास्थ्य—पर काम हो।

निष्कर्ष

टंकियों के वितरण को लेकर उठी यह बहस स्पष्ट करती है कि जनता अब केवल “दिखावटी विकास” से संतुष्ट नहीं है। यमकेश्वर की जनता वास्तविक और स्थायी समाधान चाहती है, खासकर पानी जैसी मूलभूत जरूरतों पर। सोशल मीडिया पर उमड़ा यह आक्रोश साफ संकेत देता है कि आने वाले समय में टंकियों जैसी योजनाएँ राजनीतिक मुद्दा भी बन सकती हैं।

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