देहरादून: उत्तराखंड के वन महकमे के संरक्षण प्रयासों के बावजूद राज्य के जंगलों में जैव विविधता की कुछ प्रजातियों की संख्या कम होती जा रही है। बड़ी प्रजातियों जैसे बाघ और हाथी की संख्या बढ़ी है, लेकिन कुछ वन्यजीव लुप्त होने की कगार पर हैं।
राजाजी टाइगर रिजर्व में लुप्त होती प्रजातियाँ
राजाजी टाइगर रिजर्व में जंगली कुत्ते और गैंडा अब आसानी से नहीं पाए जाते। भारतीय वन्यजीव संस्थान के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक जीएस रावत के अनुसार, उन्होंने चीला और धौलखंड क्षेत्रों में जंगली कुत्ते देखे थे। वहीं गैंडा अब राज्य में नहीं मिलता। 1931 में कोटद्वार क्षेत्र में गैंडे का शिकार हुआ था और वास स्थल प्रभावित होने के कारण यह प्रजाति अब रिपोर्ट नहीं होती।
गैंडा पुनर्वास की संभावनाएँ
पूर्व प्रमुख वन संरक्षक श्रीकांत चंदोला के अनुसार, तराई पूर्वी वन प्रभाग के किलपुरा और सुरई रेंज के जंगल गैंडे के लिए उपयुक्त वास स्थल हैं। इससे पहले इस क्षेत्र में गैंडे रिपोर्ट हुए थे। भारतीय वन्यजीव संस्थान ने यहाँ गैंडे को पुनः लाने की संभावना पर अध्ययन किया था, जिसमें वास स्थल उपयुक्त पाया गया।
कार्बेट टाइगर रिजर्व और चीता चौकी
कार्बेट टाइगर रिजर्व में स्थित चीता नाला, जिसे चीता चौकी भी कहा जाता है, वास्तव में चीते के वास स्थल जैसा नहीं है। पूर्व पीसीसीएफ चंदोला के अनुसार, चीते के लिए प्राकृतिक घास का मैदान आवश्यक होता है। इसका नाम किसी अन्य कारण से पड़ा हो सकता है।
फिन्स वीवर पक्षी की संख्या में गिरावट
केवल बड़े वन्यजीव ही नहीं, बल्कि पक्षियों की संख्या में भी गिरावट देखी गई है। फिन्स वीवर पक्षी, जो ऊधमसिंह नगर और नैनीताल में मिलती थी, अब कम दिखाई देती है। पूर्व प्रमुख वन संरक्षक धनंजय मोहन के अनुसार, यह पक्षी खेतों के पास रहती है। खेतों के स्वरूप में बदलाव, औद्योगिक गतिविधियों और वास स्थल में कमी के कारण इसकी संख्या घट रही है।
उत्तराखंड के वन विभाग के लिए यह स्थिति चिंता का विषय है। संरक्षण और जैव विविधता की सुरक्षा के लिए वन्यजीवों के वास स्थलों की पुनःस्थापना और पर्यावरण संरक्षण योजनाओं पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।