उत्तराखंड में प्रतियोगी परीक्षाओं की व्यवस्था पर सवाल

उत्तराखंड में प्रतियोगी परीक्षाओं की व्यवस्था पर सवाल, तकनीकी सुधार की मांग

देहरादून: उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) की स्नातक स्तरीय भर्ती परीक्षा के रद्द होने से राज्य में प्रतियोगी परीक्षाओं की विश्वसनीयता एक बार फिर सवालों के घेरे में है। नकलरोधी कानून के बावजूद व्यवस्थागत खामियां सामने आई हैं, जिसका खामियाजा हजारों युवाओं को भुगतना पड़ रहा है। अन्य राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तमिलनाडु, और उत्तर प्रदेश की तुलना में उत्तराखंड की परीक्षा प्रणाली तकनीकी और सुरक्षा उपायों में पीछे है। विशेषज्ञों और युवाओं ने डिजिटल ट्रैकिंग, बायोमेट्रिक, और CCTV जैसे सुधारों की मांग की है।

परीक्षा रद्द, युवाओं में निराशा

UKSSSC की स्नातक स्तरीय भर्ती परीक्षा को व्यवस्थागत अनियमितताओं के कारण रद्द कर दिया गया है। आयोग ने फुलप्रूफ इंतजामों का दावा किया था, लेकिन पेपर लीक और अन्य खामियों ने इन दावों की पोल खोल दी। इस रद्दीकरण से लाखों युवा उम्मीदवारों का भविष्य अधर में लटक गया है। सवाल उठ रहा है कि सख्त नकलरोधी कानून लागू होने के बावजूद उत्तराखंड ऐसी चूक से बच क्यों नहीं पा रहा?

नकलरोधी कानून: सार्थक परिणाम, लेकिन कमियां बरकरार

उत्तराखंड सरकार ने नकलरोधी कानून को लागू कर परीक्षाओं में पारदर्शिता लाने की कोशिश की है। इस कानून के तहत सख्त सजा और जुर्माने का प्रावधान है, जिसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं। लेकिन, तकनीकी और प्रशासनिक कमियों के कारण परीक्षा प्रणाली अभी भी अभेद्य नहीं बन पाई है। UKSSSC के सचिव डॉ. शिव प्रसाद बरनवाल ने स्वीकार किया कि परीक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने की जरूरत है। इसके लिए आयोग त्रिस्तरीय सुरक्षा मानक और आधुनिक तकनीकों जैसे 5G जैमर और CCTV निगरानी को लागू करने की योजना बना रहा है।

अन्य राज्यों से सीख: तकनीकी उपायों की जरूरत

महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य प्रतियोगी परीक्षाओं को फुलप्रूफ बनाने में उत्तराखंड से आगे हैं। इन राज्यों की कुछ प्रमुख व्यवस्थाएं इस प्रकार हैं:

  • एन्क्रिप्टेड प्रश्नपत्र: तमिलनाडु और महाराष्ट्र में प्रश्नपत्र डिजिटल रूप में एन्क्रिप्ट किए जाते हैं और सुरक्षित सर्वर पर स्टोर होते हैं। केवल अधिकृत अधिकारी ही इन्हें डीक्रिप्ट कर सकते हैं, जिससे पेपर लीक की संभावना न्यूनतम होती है।
  • बायोमेट्रिक और OTP वेरिफिकेशन: परीक्षार्थी की पहचान सुनिश्चित करने के लिए बायोमेट्रिक और OTP आधारित सत्यापन होता है, जिससे कोई दूसरा व्यक्ति परीक्षा नहीं दे सकता।
  • स्ट्रांग-रूम और जीपीएस ट्रैकिंग: प्रश्नपत्र और उत्तरपुस्तिकाओं को CCTV और अलार्म युक्त स्ट्रांग-रूम में रखा जाता है। जीपीएस ट्रैकिंग से ट्रांसपोर्ट की निगरानी होती है।
  • CCTV और AI मॉनिटरिंग: परीक्षा केंद्रों पर लाइव CCTV और AI-आधारित निगरानी से संदिग्ध गतिविधियों का तुरंत पता चलता है।
  • ब्लॉकचेन तकनीक: ब्लॉकचेन आधारित प्रश्न-बैंक से प्रश्नपत्र और उत्तरपुस्तिकाएं टैम्पर-प्रूफ रहती हैं, जिससे छेड़छाड़ असंभव हो जाती है।

उत्तराखंड को इन तकनीकों को अपनाने की जरूरत है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि हर प्रश्नपत्र पर यूनिक QR कोड, डिजिटल ट्रैकिंग, और स्मार्ट लॉकर जैसी व्यवस्थाएं लागू की जाएं।

UKSSSC के सामने चुनौतियां और भविष्य की योजनाएं

परीक्षा रद्द होने के बाद UKSSSC अब सतर्कता बरत रहा है। आयोग ने भविष्य की परीक्षाओं के लिए कड़े मानक बनाने की योजना बनाई है। इसमें शामिल हैं:

  • त्रिस्तरीय सुरक्षा मानक: पुलिस, आयोग के अधिकारी, और तकनीकी उपकरणों की तैनाती।
  • आधुनिक उपकरण: 5G जैमर, लाइव CCTV, और बायोमेट्रिक सत्यापन।
  • डिजिटल निगरानी: प्रश्नपत्र की छपाई, वितरण, और स्टोरेज की डिजिटल ट्रैकिंग।

आयोग के सचिव डॉ. बरनवाल ने कहा, “परीक्षा की शुचिता हमारी प्राथमिकता है। जल्द ही व्यवस्था की समीक्षा कर कमियों को दूर किया जाएगा।” आगामी परीक्षाओं की प्रस्तावित तिथियां इस प्रकार हैं:

  • वन दारोगा (124 पद): 28 अक्टूबर 2025
  • उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के सदस्य (20 पद): 15 दिसंबर 2025
  • सहायक अध्यापक (128 पद): 18 जनवरी 2026
  • विशेष तकनीकी सहायक (62 पद): 1 फरवरी 2026
  • वाहन चालक (37 पद): 22 फरवरी 2026
  • कृषि सहायक इंटरमीडियट (212 पद): 15 मार्च 2026
  • सहायक लेखाकार (36 पद): 29 मार्च 2026
  • कनिष्ठ सहायक (386 पद): 10 मई 2026
  • आईटीआई डिप्लोमा (41 पद): 31 मई 2026
  • विभिन्न विभागों में स्नातक स्तरीय (48 पद): 21 जून 2026

युवाओं का भविष्य, व्यवस्था की जिम्मेदारी

UKSSSC स्नातक स्तरीय परीक्षा का रद्द होना उत्तराखंड के युवाओं के लिए बड़ा झटका है। नकलरोधी कानून के बावजूद बार-बार होने वाली चूक ने आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं। अन्य राज्यों की तरह डिजिटल और तकनीकी उपाय अपनाकर ही परीक्षा प्रणाली को अभेद्य बनाया जा सकता है। आयोग को जल्द से जल्द सुधार लागू करने होंगे, ताकि युवाओं का भरोसा बहाल हो और उनका भविष्य सुरक्षित रहे। यह न केवल आयोग की जिम्मेदारी है, बल्कि सरकार के लिए भी एक बड़ा सबक है।

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