शारदीय नवरात्रि 2025 की शुरुआत, इस बार 10 दिनों तक होगी साधना; जानें दुर्गा चालीसा पाठ का महत्व

शारदीय नवरात्रि 2025 की शुरुआत, इस बार 10 दिनों तक होगी साधना; जानें दुर्गा चालीसा पाठ का महत्व

आज से शारदीय नवरात्रि की शुभ शुरुआत हो चुकी है। मां दुर्गा की उपासना के लिए यह पर्व हर साल बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ दिन देवी के अलग-अलग स्वरूपों की साधना, व्रत और पूजा-अर्चना के लिए समर्पित रहते हैं। लेकिन इस बार यह पर्व खास है, क्योंकि तिथि बढ़ने से नवरात्रि 9 नहीं बल्कि 10 दिनों तक चलेगी। इसे अत्यंत शुभ माना जा रहा है।

नवरात्रि की विशेषताएं

नवरात्रि पर भक्तजन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं। इस दौरान व्रत रखने वाले लोग नौ दिनों तक नियमों का पालन करते हुए उपवास रखते हैं। प्रतिदिन सुबह और शाम आरती, दुर्गा सप्तशती का पाठ और दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ करने से भक्तों को विशेष कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

दुर्गा चालीसा पाठ का महत्व

मान्यता है कि दुर्गा चालीसा का पाठ करने से सभी दुख-दर्द दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। मां दुर्गा के प्रति समर्पित भाव से पाठ करने वाला भक्त सभी बाधाओं को पार करता है।

दुर्गा चालीसा पाठ (Durga Chalisa Path)

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥ अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥ शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥ धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥ लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥ हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥ श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥ कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥ नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुंलोक में डंका बाजत॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥ महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥ परी गाढ़ संतन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥ ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥ ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥ शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥ शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥ भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥ आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपू मुरख मौही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥ करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥ दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

👉 भक्त इस नवरात्रि में विधि-विधान से दुर्गा चालीसा का पाठ कर सकते हैं। यह चालीसा मां दुर्गा की स्तुति और उनकी शक्ति का गुणगान करती है।

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