संकष्टी चतुर्थी 2025

संकष्टी चतुर्थी 2025: तिथि, महत्व, पूजा विधि और मंत्रों का परिचय

Sankashti Chaturthi (जिसे संस्कृत में संकट्हर चतुर्थी भी कहा जाता है) हर कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित है और श्रद्धालु इस दिन अपनी भक्ति से जीवन की बाधाएँ दूर करने का प्रयास करते हैं।

संकष्टी चतुर्थी 2025 — तिथि और समय

  • चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 9 अक्तूबर 2025, रात 10:54 बजे
  • चतुर्थी तिथि समाप्त: 10 अक्तूबर 2025, शाम 7:38 बजे
  • व्रत रखने का दिन: 10 अक्तूबर 2025 (उदय तिथि नियम के अनुसार)
  • शुभ मुहूर्त: सुबह 11:44 से 12:31 बजे तक
  • नक्षत्र: कृत्तिका नक्षत्र, जो शाम 5:31 बजे तक रहेगा
  • योग: सिद्ध योग, शाम 5:41 बजे तक रहेगा

स्रोत: आपकी दी गई जानकारी
(यदि आप पंडजग, खगोलशास्त्र या पंचांग स्रोत चाहें तो उसे भी जोड़ सकते हैं)

ये समयस्थियाँ स्थानीय पंचांग और नक्षत्रों के अनुसार अलग-अलग स्थानों पर भिन्न हो सकती हैं।
आप अपने स्थानीय पंचांग या ऑनलाइन पंचांग (DrikPanchang आदि) से समय की पुष्टि कर लें।

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

  • “संकष्टी” शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है — संकट (कष्टों) और ह्‌र (हरने वाला) — अर्थात् वह दिन जो संकटों को दूर करता है।
  • इस दिन भगवान गणेश की आराधना करने से जीवन में आने वाली बाधाएँ, रोग, मानसिक तनाव आदि दूर होते हैं।
  • पूजा, व्रत औरशुभ मंत्रों से आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है और भक्तों को मनचाहा फल मिलता है।
  • यदि यह व्रत मंगलवार (अंगारकी चतुर्थी) को आता है, तो इसे विशेष श्रेष्ठ माना जाता है।

व्रत विधि एवं पूजा क्रम

नीचे एक विस्तृत पूजा विधि दी जा रही है, जिसे पालन कर श्रद्धालु संकष्टी चतुर्थी का व्रत संपन्न कर सकते हैं:

संकष्टी चतुर्थी 2025 – पूजा क्रम (Responsive Table)

संकष्टी चतुर्थी 2025 — व्रत विधि एवं पूजा क्रम

नीचे दिया गया तालिका मोबाइल और डेस्कटॉप दोनों पर पढ़ने के लिए अनुकूल (responsive) है।

क्रम अनुष्ठान विवरण
1 प्रातः शुद्धिकरण दिन की शुरुआत स्नान और स्वच्छ वस्त्र पहनकर करें।
2 पूजा स्थान तैयार करना साफ चौकी पर गणेश जी की मूर्ति रखें और पूजा की थाली सजाएँ।
3 सिंहासन व वस्त्र अर्पण गणेश जी को स्वच्छ वस्त्र पहनाकर सिंदूर और आरती के लिए तैयार करें।
4 दूर्वा और पुष्प दूर्वा (तीन पत्ते) और ताजे पुष्प चढ़ाना अति शुभ माना जाता है।
5 दीप, धूप, अगरबत्ती घी का दीप जलाएं तथा धूप और अगरबत्ती से वातावरण पवित्र करें।
6 भोग अर्पण मोदक या बेसन के लड्डू गणेश जी को भोग के रूप में चढ़ाएं।
7 गणेश चालीसा / मंत्र पाठ गणेश चालीसा और गणपति मंत्र का पाठ करें; स्तुति के साथ मन को एकाग्र करें।
8 चंद्र-दर्शन और व्रत-उद्धरण संध्याबेल में चतुर्थी के चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोलना उत्तम।
9 आरती एवं समापन आरती कर किसी भी भूल-चूक के लिए क्षमा माँगें और प्रसाद वितरित करें।

नोट: स्थानीय परंपरा और पंडित के अनुसार कुछ क्रम भिन्न हो सकते हैं। व्रत से जुड़ी तिथियाँ स्थान अनुसार बदल सकती हैं — स्थानीय पंचांग से समय की पुष्टि अवश्य करें।

कुछ जगहों पर यह व्रत मध्यान भोजन तक विधि व्रत (ड्राइ या अन्न-वर्जन) के रूप में भी किया जाता है।
व्रत कथा (प्रत्येक माह की कथा) सुनना या पाठ करना व्रत को पूर्ण बनाता है।

उपकार और लाभ

  • बाधाओं और संकटों से मुक्ति |
  • व्यवसाय एवं कार्य में सफलता |
  • मानसिक शांति एवं समृद्धि |
  • वाणी दोषों का निवारण |
  • भक्त के मनोबल और विश्वास को सुदृढ़ करना

धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में भी यह उल्लेख मिलता है कि इस व्रत के फल से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है।

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