देहरादून। उत्तराखंड में बेरोजगार संघ के युवाओं का आंदोलन लगातार सुर्खियों में है। आंदोलनकारियों का कहना है कि जब-जब जनता ने अपनी आवाज़ बुलंद की, तब-तब उनकी आवाज़ को दबाने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपनाए गए। आरोप है कि सरकार आंदोलन को बदनाम करने के लिए युवाओं को कभी जिहादी, कभी देशद्रोही, तो कभी माओवादी जैसे शब्दों से संबोधित कर रही है।
युवाओं का आरोप है कि आंदोलन की धार को कमजोर करने के लिए सरकार द्वारा कई वक्ताओं के भाषणों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, जिससे समाज को भ्रमित किया जा सके। हालांकि, उनका कहना है कि सरकार की अब तक की तमाम कोशिशें नाकाम रही हैं। आंदोलन में शामिल छात्रों का दावा है कि हरिद्वार के एक स्कूल से जुड़े फर्जी बेरोजगारों के सहारे भ्रम फैलाने का प्रयास भी विफल रहा।
आंदोलनकारियों ने कहा कि लोकतंत्र में जनता को अपनी मांगों को पूरी ताकत से सरकार तक पहुंचाने का अधिकार है। ऐसे में युवाओं की आवाज़ को “देशद्रोही” या “अराजक” कहकर दबाने की कोशिश बेहद चिंताजनक है। उनका कहना है कि सरकार को यह समझना चाहिए कि आखिरकार शांत और धैर्यवान माने जाने वाले पहाड़ी युवा आज सड़कों पर क्यों उतर रहे हैं।
युवाओं ने सीधा सवाल उठाया कि प्रदेश के मुखिया को अपने “परिवार” यानी जनता की नाराजगी का कारण समझने की बजाय आंदोलन को तोड़ने की रणनीतियाँ क्यों बनाई जा रही हैं। आंदोलनकारियों ने चेतावनी दी कि वे अपनी मांगों से पीछे हटने वाले नहीं हैं और शांतिपूर्ण तरीके से अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।