Kunjapuri Trek Rishikesh

कुंजापुरी ट्रेक, ऋषिकेश: सूर्योदय, रोमांच और प्रकृति का जादू

परिचय: क्यों है कुंजापुरी खास?

ऋषिकेश अपनी गंगा, योग और ध्यान के लिए मशहूर है, लेकिन अगर आप भीड़-भाड़ से दूर, पहाड़ों और जंगलों की गोद में थोड़ी शांति और रोमांच चाहते हैं, तो आपका कदम स्वाभाविक रूप से कुंजापुरी ट्रेक की ओर बढ़ेगा। इस ट्रेक से आपको हिमालय की कुछ शानदार चोटियां—स्वर्गरोहिणी, गंगोत्री, बंदरपंच और चौखंबा—भी देखने को मिलेंगी!

कुंजापुरी मंदिर ऊँची चोटी पर स्थित है और शहर के लगभग हर हिस्से से दिखाई देता है। मेरे मन में हमेशा यह ख्याल आता था – “एक दिन मैं यहाँ जरूर पहुँचूंगा।” और मौका भी मिला।

कुंजापुरी चोटी से उगता सूरज – एक अविस्मरणीय अनुभव

ट्रेक शुरू: तपोवन

हमने ट्रेक की शुरुआत तपोवन से की। सबसे पहले रास्ता गाँव की गलियों से होकर निकलता है, जहाँ अभी-अभी सुबह का उजाला फैल रहा था। कुछ देर तक यह पगडंडी एक छोटे-से पानी के गदेर (stream) के साथ-साथ चलती है। पानी की कल-कल आवाज़ और किनारों पर खड़े पेड़ इस सफर को और भी सुखद बना देते हैं।

तपोवन से कुंजापुरी तक का रोमांचक ट्रेक

बीच-बीच में इस गदेर को पार करने के लिए बने छोटे-छोटे सीमेंट के पुल मिलते हैं। उन पुलों पर चलते हुए ऐसा अहसास होता है मानो हम किसी hidden trail पर हों, जो हमें सीधा पहाड़ों और जंगल की गहराई में ले जा रहा हो।

धीरे-धीरे जैसे-जैसे चढ़ाई बढ़ती गई, आसमान का रंग भी बदलने लगा। काली रात धीरे-धीरे नीले और फिर सुनहरे रंग में ढल रही थी। जब तक हम कुंजापुरी मंदिर पहुँचे, सूरज की पहली किरणें पहाड़ों के पीछे से झाँक रही थीं।

कुंजापुरी ट्रेक से सूर्योदय का दृश्य

और फिर सामने जो दृश्य था…
सच कहूँ तो शब्द कम पड़ जाते हैं। सामने बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियाँ, नीचे फैली घाटियाँ और बीच में उगता हुआ सूरज – ऐसा लग रहा था मानो पूरा आकाश हमारे सामने रंगों से भर गया हो। उस पल का रोमांच और शांति दोनों एक साथ महसूस हुए।

वैसे भी में अपने जीवन में पहली बार उतनी सवेरे उठा था, शायद सवेरे ऐसा ही अनुभव होता होगा मैने मन ही मन अपने आप से बोला! सवेरे सवेरे का हल्का उजाला और ताज़गी भरी हवा! जीवन में यही तो था जो मै मिस कर रहा था!

कुंजापुरी मंदिर: पूजा और ध्यान का अनुभव

कुंजापुरी मंदिर सिर्फ़ एक ट्रेकिंग डेस्टिनेशन ही नहीं, बल्कि एक सिद्ध पीठ है। इसे माता सती के 52 शक्तिपीठों में गिना जाता है। कहा जाता है कि जब राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, तब सती ने अपने पिता के यज्ञ कुंड में कूदकर देह त्याग दी। शोक और क्रोध में व्याकुल भगवान शिव सती का शरीर लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूमते रहे। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से शरीर के अंगों को खंड-खंड कर दिया। जहाँ-जहाँ अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठ बने। कुंजापुरी में सती का वक्षस्थल गिरा था। तभी से यह स्थान सिद्धपीठ और भक्तों के लिए एक प्रमुख आस्था का केंद्र है।

मंदिर ऊँची चोटी पर स्थित है और यहाँ से हिमालय की बर्फ़ से ढकी चोटियाँ, ऋषिकेश और हरिद्वार तक का दृश्य दिखाई देता है। सुबह के समय मंदिर में केवल पुजारी होते हैं। वहाँ हमने पूजा की, थोड़ी देर ध्यान लगाया और मन को असली शांति का अनुभव हुआ।

ट्रेक के रास्ते में नीरगड्डू गाँव की सादगी

वापसी का सफ़र

मंदिर से निकलने के बाद हमने वहीं जंगल में थोड़ी लकड़ियाँ इकट्ठा कीं और मज़े से मैगी बनाई। पहाड़ों की ठंडी हवा में बैठकर गरमा-गरम मैगी खाने का मज़ा ही कुछ और होता है – शायद वही जो चीज़ पैकिंग में साधारण लगती है, वही जंगल के बीच में किसी फाइव-स्टार दावत जैसी लगती है।

मैगी खत्म होते ही हम वापस निकल पड़े। वापसी का रास्ता हमेशा आसान लगता है – एक तो नीचे उतरना होता है, और ऊपर चढ़ाई जैसा थकान नहीं होती। धीरे-धीरे चलते हुए हम नीरगड्डू गाँव पहुँचे। वहाँ का दृश्य बिल्कुल अलग ही था। खेतों में लोग धान की बुआई कर रहे थे, कोई बैलों के साथ हल चला रहा था तो कोई अपने खेत में पानी छोड़ रहा था। गाँव इतना साफ़-सुथरा और सुंदर था कि बस मन वहीं अटक गया।

संयोग देखिए, मेरे एक पुराने दोस्त वहीं खेत में हल चला रहे थे। मुझे देखते ही उन्होंने तुरंत घर फोन किया और हमें थोड़ी देर रुकने को कहा। हम रुक गए और बातें कर ही रहे थे कि अचानक एक छोटा बच्चा भागते हुए आया और हमारे हाथ में गरमागरम चाय थमा दी ☕। सच कहूँ तो वो कप चाय किसी होटल की सबसे महंगी कॉफ़ी से कहीं ज्यादा मीठा और प्यारा लगा।

ट्रेक के अंत में ठंडी फुहारें और सुकून

थोड़ी देर बाद हम गाँव से आगे बढ़े और पहुँचे नीरगड्डू वॉटरफॉल। आमतौर पर यहाँ भीड़ रहती है, लेकिन उस समय वहाँ कोई नहीं था। पूरे झरने का माहौल सिर्फ हमारे लिए था। हमने वहाँ थोड़ी देर बैठकर झरने की आवाज़ और ठंडी फुहारों को महसूस किया। यह पल इतना सुकूनभरा था कि जैसे समय वहीं रुक गया हो।

आख़िरकार हम मेन रोड पर पहुँचे और फिर धीरे-धीरे चलते हुए वापस तपोवन लौट आए। थकान तो थी, लेकिन दिल पूरा खुश था। उस दिन का सफ़र सिर्फ एक ट्रेक नहीं, बल्कि एक यादगार अनुभव बन गया – जिसमें था सूर्योदय का जादू, मंदिर की शांति, जंगल का रोमांच, गाँव की सादगी और झरने का सुकून

अगली बार जब भी आपको ऋषिकेश आने का मौका लगे तो इस ट्रेक को अपनी लिस्ट में ऐड करना न भूलें, क्यूकी, पहाड़ों की गोद में एक यादगार पल आपका इंतज़ार कर रहा है!

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