दुर्गा पूजा भारत के प्रमुख हिंदू त्योहारों में से एक है, जिसे पूरे देश में खासकर पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, त्रिपुरा, बिहार और झारखंड में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पांच दिवसीय त्योहार सांस्कृतिक उत्सव का प्रतीक है, जिसमें पंडाल, ढाक की थाप, भक्ति, नए कपड़े पहनना और स्वादिष्ट व्यंजन शामिल होते हैं।
दुर्गा पूजा 2025 का कैलेंडर
2025 में दुर्गा पूजा का आयोजन 28 सितंबर से 2 अक्टूबर तक होगा, जबकि इसके पूर्व धार्मिक अनुष्ठान और तैयारियां महालय से एक सप्ताह पहले यानी 21 सितंबर, रविवार से शुरू होंगी।
दिन | त्योहार / कार्यक्रम | तारीख |
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महालय अमावस्या | Mahalaya Amavasya | 21 सितंबर |
बिल्व निमंत्रण | Bilva Nimantran | 27 सितंबर |
दुर्गा पूजा प्रारंभ (षष्ठी) | Durga Puja Begins (Shashthi) | 28 सितंबर |
महा सप्तमी, कोलाबाउ पूजा | Maha Saptami, Kolabou Puja | 29 सितंबर |
महा अष्टमी, संधि पूजा | Maha Ashtami, Sandhi Puja | 30 सितंबर |
महा नवमी, नवमी होम | Maha Navami, Navami Homa | 1 अक्टूबर |
दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी, सिंदूर खेला | Durga Visarjan, Vijayadashami, Sindoor Khela | 2 अक्टूबर |
दुर्गा पूजा 2025: प्रत्येक दिन का महत्व
दुर्गा पूजा, जिसे दुर्गोत्सव भी कहा जाता है, महालय अमावस्या के अगले दिन से शुरू होता है।
- महालया: पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है, जब हिंदू अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यह किसी भी कार्य की शुरुआत के लिए शुभ नहीं माना जाता। महालय देवी पक्ष की शुरुआत भी होता है, जब मां दुर्गा अपने मायके कैलाश से गृहस्थ धाम आती हैं। बंगाली समुदाय के लोग इस दिन जल्दी उठकर बीरेंद्र कृष्ण भद्र द्वारा महिषासुर मर्दिनी का पाठ सुनते हैं। साथ ही मूर्तिकार इस दिन चोक्कू दान के रूप में मां दुर्गा की आँखें रंगते हैं।
- षष्ठी: इस दिन देवी की मूर्ति की पूजा प्रारंभ होती है और स्वागत के अनुष्ठान किए जाते हैं। इसके बाद नवपत्रिका स्नान किया जाता है, जिसमें देवी के नौ रूपों का प्रतीक नौ पौधों को स्नान कर मूर्ति के पास रखा जाता है।
- सप्तमी, अष्टमी और नवमी: महा अष्टमी और नवमी दुर्गा पूजा के सबसे शुभ दिन माने जाते हैं। इस दौरान विशेष पूजा, संधि पूजा और हवन अनुष्ठान होते हैं।
- विजयादशमी: दुर्गा विसर्जन का दिन है। साथ ही सिंदूर खेला भी होता है, जिसमें विवाहित महिलाएं एक-दूसरे के गालों पर सिंदूर लगाती हैं। यह उत्सव विजय और भक्ति का प्रतीक है।
दुर्गा पूजा केवल धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, भक्ति और सामाजिक मेलजोल का प्रतीक भी है। इस पर्व के दौरान पंडालों, सजावट और पारंपरिक भोजन का आनंद लेने के साथ, भक्ति और आध्यात्मिकता में भी डूबा जा सकता है।